मजबूत मंहगाई और मजबूर मध्यमवर्ग 


               इन दिनों यूं तो बाबा अपना 'शाणपना' दिखाते हैं। एक अच्छे व्यवसाई की तरह। विज्ञापनों के अलावा बोलते नहीं,दिखते नहीं। यह काम भी उन्होंने चुपचाप किया था- मगर बर्र के छत्ते में हाथ चला गया।  पनामा के बाद पेंडोरा की रिपोर्ट भी आ गई। काला धन बढ़ने लगा। काले धन में लिप्त लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं, कोई पूछताछ नहीं, कोई छापा नहीं। काला धन बढ़ा तो पेट्रोल, डीजल के दामों की सेंचुरी तो लगना ही थी - लग गई। मगर जश्न नहीं मना। बाबा को लगा- अनुपम, अमिताभ, अक्षय को 70-80 रुपया लीटर पेट्रोल के भाव पहुंचने पर महंगाई को लेकर अपने पुराने  ट्वीट्स और अभी की चुप्पी के कारण फजीहत झेलना पड़ी, कहीं मेरा नंबर भी न आ जाए इस डर से उन्होंने अपना एक पुराना ट्वीट 20 अक्टूबर को डिलीट कर दिया। लोग सरकार से पंगा  ले  नहीं सकते तो उन्होंने बाबा को ही चपेट में ले लिया। मजबूरी में बाबा को बोलना पड़ा।

                 मैं बाबा का बयान सुन रहा था कि वे आ गए। पूछा- "क्या चल रहा है?"

"बाबा का, बाबा बना दिए जा रहे लोगों को दिया जाने वाला सांत्वना संदेश सुन रहा हूं।"- मैं बोला।

"क्या वाणी विलास कर रहे हैं बाबा?"- उन्होंने पूछा।

"सरकार को, सरकार चलानी है इसलिए राष्ट्रहित में सरकार पेट्रोल के दाम बढ़ा रही है।"

"वाह, क्या बात है! बाबा को अपनी जमी जमाई दुकान पर ईडी, आईटी, सीबीआई के छापे थोड़े ही डलवाने हैं। धन के ढेर पर बैठे है वे इन दिनो। अब बयानबाजी, आंदोलन क्यों करेंगे!"- उन्होंने कहा 

"ठीक तो कहते हैं वे। सरकार को, सरकार चलाने के लिए पैसे वालों को सत्ता में थोड़ी हिस्सेदारी देनी होती है। उनकी संख्या तो देश में चार-पांच परसेंट हैं। निर्धनों को थोड़ी सहायता देकर ढिंढोरा पीटना होता हैं। बैलेंस बैठ जाता है। इन सब काम के लिए पैसा तो चाहिए। कभी-कभी सरकार बनाने के लिए खरीददारी भी करना पड़ती हैं।"- मैंने कहा।

"ठीक कह रहे हो। सरकार के इस चक्कर से मध्यमवर्गी पीस जाता हैं।"-उन्होंने कहा।

"इन 13-14 करोड़ मध्यमवर्ग के लोगों की ताकत ही क्या है! जो सरकार के फैसलों में दबाव बना बदलाव लाएं। और तो और इनमें से ज्यादातर लोग वोट डालने भी नहीं जाते।"- मैंने कहा

"सही कह रहे हो। मगर ये नौ दस परसेंट लोग ही सरकार का खर्चा निकालते हैं। ज्यादातर टैक्स इन्हीं लोगों से आता हैं। शिक्षा के लिए, स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यह लोग सरकार को पैसा देते है और सुविधा पाने के लिए प्राइवेट में खर्चा करते हैं! नौकरी, असुरक्षा की भावना के साथ करते हैं। ये लोग ही जमीन, मकान, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि की डिमांड को बनाए रखते हैं।"- उन्होंने कहा। 

"तो उससे  सरकार को क्या? महामारी के बाद मध्यम वर्ग की हालत और भी पतली हो गई। बचत खत्म हो गई। सन 2011 में ये लोग अपनी आय का 20% तक का हिस्सा लोन में चुका रहे थे, अब 40% जितना चुका रहे हैं। बिना कोई बड़ी महंगी चीज खरीदे हुए! मतलब इन लोगों की आय में कमी हुई है। अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में K टाइप की रिकवरी आ रही हैं।"- मैंने कहा।

"यह K टाइप की रिकवरी क्या होती है?" उन्होंने सवाल दागा। 

" K टाइप का मतलब K की दो डंडियां। एक ऊपर जा रही है। एक नीचे आ रही है। जो लोग ऊपर वाली डंडी पर सवार हैं, वे ऊपर और ऊपर जा रहे हैं। एक से, एक हजार करोड़  रुपए जितना रोज का कमा रहे हैं! जो लोग नीचे वाले डंडी पर सवार है, वे नीचे गिर रहे हैं। खाने के लाले पड़ रहे हैं। यह है, K टाइप रिकवरी।"- मैंने जवाब दिया।

"अच्छा। लोग बोल रहे हैं कि उच्च मध्यम वर्ग ने महामारी के दौरान देख लिया की जेब में पैसा है मगर जिंदा रहने के लिए इलाज तक नहीं उपलब्ध है।  संपन्न वर्ग के बाद ये लोग भी विदेश में बसने की सोचने लगे। परीक्षा, वीजा, पिआर की फॉर्मेलिटी, दोस्तों-यारों से बातें कर जुगाड़ बिठा रहे हैं।"- उन्होंने कहा।

"अब तुम भी बोलने लगे। पहले तो लोगों को पाकिस्तान, अफगानिस्तान भेज रहे थे।"- मैंने कहा।

"अरे, अफगानिस्तान से याद आया। अडानी पोर्ट पर 21000 करोड़ के मामले में अडानी का बयान आया कि वह पाकिस्तान, अफगानिस्तान का जहाज अपने यहां खाली नहीं होने देंगे। वैसे यह देश की नीति से जुड़ा मामला नहीं है? वे कैसे निर्णय ले सकते हैं? विपक्षी दल क्या सो रहे हैं? तुम भी कुछ नहीं बोल रहे। बिक गए हो क्या!"- उन्होंने हंसकर कहा।

"सब अपना जुगाड़ बिठा रहे हैं। इन बयानों से राष्ट्रप्रेम की इमेज बनती है। मूल मुद्दा दब जाता है। सूट-बूट की सरकार हाथी नहीं देखती, उसकी पूंछ पकड़ती हैं।"- मैंने कहा।

"तुम भी लगे ना आर्यन खान की तरफदारी करने। व्हाट्सएप चैट वगैरह हो तो डिलीट कर देना। मैं कुछ मदद नहीं कर पाऊंगा।"- कहकर वे हंस दिए और चल दिए। एक मध्यमवर्गीय की तरह गर्दन झुका कर। 

       उनकी-मेरी औकात ही क्या! बातें करने के अलावा। मजबूरी जो ठहरी।

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